होली पर निबंध
होली भारत वर्ष में हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हिंदी कैलेंडर के अनुसार सबसे आखरी त्योहार भी हैं। यह त्योहार फाल्गुन महीने कि पुरनमासी (मार्च) में मनाया जाता हैं। इस त्योहार को हम रंगों का त्योहार भी कहते हैं। यह हिन्दुओं के बड़े और पावन त्योहारों में से एक हैं। इस त्योहार को अन्य समुदाय के लोग भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस त्योहार में बड़े और वयस्क लोग भी बच्चा बना देने वाले अनेकों मनोरंजक कार्य करते हैं जैसे नाचना, गाना, मौज मनाना। सब लोग अपने अपने तरीके से होली के पर्व को मनाने की तैयारी में जुट जाते हैं। इस दिन सब फाग भी गाते हैं और नाच-गाना, भजन भी होता हैं। सब फाग के गीत, ढोलक, मंजीरा, बांसुरी और हारमोनियम गा-बजा के इस दिन के ख़ुशी को चार चाँद लगा देते हैं।
फाल्गुन मास की शुरुवात ठंड़काल के मौसम को विदा करने आती है और साथ ही होली का रंगों और पानी से खेले जाने वाला त्योहार भी लाती हैं जिसमे सब अपनी मौज-मस्ती में खोकर इस त्योहार का आनंद लेते हैं। होली से एक दिन पहले ही इस त्योहार की शुरुवात हो जाती हैं। होलिका दहन के दिन सब लोग अकड़ियाँ एकत्रित करना शुरू कर देते हैं और अगले दिन के लिए पकवान, मिठाइयां और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन बनाना शुरू कर देते हैं। रंगों और गुलालों का भण्डार का इंतजाम किया जाता है, बच्चे पिचकारी और अन्य पानी वाले खिलोने निकलने लगते हैं। फाल्गुन माह के पूर्णमासी की रात को सब होलिका दहन करके इस त्योहार की शुरुवात करते हैं। होलिका जलने के बाद सब इस तेज़ अग्नि के साथ अपनी सभी बुराई, गलत चीज़े और क्रूरता को भी जला देते हैं और नए हिंदी वर्ष के आगाज़ में सभी आनंदित होकर होली का त्योहार मनाते हैं। सभी एक दूसरे के घर जाकर सभी को रंग लगाकर, बड़ों का आशीर्वाद लेकर इस त्योहार को मनाते हैं।
होली के पावन त्योहार के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसे हम बुराई पर सच्चाई और अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतिक मानते है। विष्णुपुराण की एक कथा के अनुसार इस त्योहार को असुरराज हिरण्यकश्यप के वध और उसकी बहन होलिका के अग्नि में जलने की ख़ुशी में इस त्योहार को मनाया जाता है। हिरण्यकश्यप नाम का एक असुरराज था और उसका बेटा प्रह्लाद जो भगवान् नारायण जी का परम भक्त था और सदैव नारायण भगवन के नाम का जाप और उनके मंत्रोच्चारण करता रहता था। यह बात हिरण्यकश्यप को अच्छी नहीं लगती थी क्योंकि वह चाहता था की सब भगवान् के बजाय उसकी पूजा करे। उसे ब्रम्हदेव जी से वरदान मिला था की इस संसार का कोई भगवान्, नर-नारी, जानवर-प्राणी, कोई अस्त्र-शस्त्र उसका वध नहीं कर सकते थे। उसने कई प्रयास किये प्रह्लाद की भक्ति को रोकने का लेकिन वे असफल रहे। अंत में वे अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को लेकर जलती अग्नि में बैठने का आदेश दिया। होलिका को अग्नि नहीं जला सकती थी ऐसा वरदान उसे मिला था। लेकिन अग्नि देव ने प्रह्लाद की आस्था के कारण उसे छोड़ होलिका को जला डाले और हिरण्यकश्यप का वध भगवन विष्णु जी ने नरसिम्हा का अवतार लेकर कर दिए। इसी दिन को सब बुराई पे सच्चाई की जीत के उपलक्ष में होली के त्योहार को मनाते हैं।
होली के इस पावन त्योहार पर कुछ लोग अपनी गलत धारणाओं के कारण इस पर्व को गन्दा करने की कोशिश करते है। मदिरापान और मादक पदार्थों का सेवन के फ़िज़ूल में हंगामा करते है। होलिका दहन के दौरान टायरों को जला के वातावरण को दूषित करने का प्रयास करते हैं। बहुत से नासमझ लोग रंग गुलाल से होली खेलने की जगह पेंट, ग्रीस और अन्य केमिकल रहित रंगों का इस्तेमाल कर लोगों के स्वास्थय से खिलवाड़ करते हैं। हमें समाज के ऐसे बुरे लोगों को सुधारने की आवश्यकता हैं जिससे की हमारा होली का खूबसूरत रंगों का त्योहार अत्यंत खुशियों का त्योहार बन जायगा। इस दिन सभी अपने-परायों को गले मिलकर उन्हें होली की बधाई देते हैं। हर तरफ भाईचारा का माहौल रहता हैं। सब लोग बड़े आनंद और उल्हास से इस त्योहार को मनाते हैं।